Kovid-19 virus targeting children seeing color, black-Hispanic eight times more ill
Kovid-19 virus targeting children seeing color, black-Hispanic eight times more ill
The corona infection is targeted by seeing the 'color' of children. A series of studies have shown that the epidemic has affected black and Hispanic children more. If the rate of hospitalization of these children is five to eight times higher than the white population, then their death is also much higher.
Also, blacks were found in abundance in children with the fatal multi-system inflammatory syndrome. According to the Center for Disease Control and Prevention, about 100 children in the US have lost their lives to Corona, most of them from the minority community.
According to the report published in the journal BMJ, Corona is affecting black children more not only in America but also in UK. The number of blacks among the infected children going to ICU in UK hospitals is comparatively higher, with MIS-C making them more victims. Six times the risk for Hispanic
Dr. Monica K. of Children's National Hospital in America Goyal says half of the 1,000 children who were infected in a Washington area during March-April were Hispanic and one-third were black. According to a Goyal study, Hispanic children were six times more likely to be found corona positive than whites in Washington. At the same time, it was doubled among blacks.
CDC report also confirmed
According to a CDC report, black children are found to be riskier in the US. A study conducted on 576 children below 18 years admitted to hospitals between March 25 and July 25 found that half of them were suffering from some form of illness. Obesity and lung disease were common in this. The CDC also studied MIS C on 570 children from 40 states between March 2 and July 18.
It was found that 40 percent of the children with this disease were Hispanic and 33 percent were black. At the same time, the white figure was only 13 percent.
Guardians of most victims associated with essential services
Professor of Pediatrics at the University of Stanford. According to Yuvon Maldonado, the parents of most of these children are from a weaker section and are connected to services. They have to move a lot, this makes their children more vulnerable to infection.
Researchers at Howard University have found that immigrants in Massachusetts have higher infection rates among communities associated with food service and communities living in shared homes.
रंग देखकर बच्चों को निशाना बना रहा कोविड-19 वायरस, अश्वेत-हिस्पैनिक आठ गुना अधिक बीमार
कोरोना संक्रमण बच्चों का 'रंग' देखकर निशाना बना रहा है। सिलसिलेवार हुए अध्ययनों से पता चला है कि इस महामारी ने अश्वेत व हिस्पैनिक बच्चों को ज्यादा प्रभावित किया है। श्वेतों की तुलना में इन बच्चों की अस्पताल में भर्ती होने की दर पांच से आठ गुना ज्यादा रही तो उनकी मौत भी कहीं अधिक हुई है।
साथ ही जिन बच्चों में जानलेवा मल्टी सिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम पाया गया, उनमें भी अश्वेत बहुतायत में मिले। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशऩ के अनुसार, अमेरिका में अब तक करीब 100 बच्चों ने कोरोना से जान गंवाई है, जिनमें ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय के ही हैं।
जर्नल बीएमजे में छपी रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में ही नहीं, ब्रिटेन में भी अश्वेत बच्चों को कोरोना अधिक प्रभावित कर रहा है। ब्रिटेन के अस्पतालों में आईसीयू में जाने वाले संक्रमित बच्चों में अश्वेतों की तादाद तुलनात्मक रूप से ज्यादा रही है।साथ ही एमआईएस -सी ने उन्हें ज्यादा शिकार बनाया है। हिस्पैनिक के लिए खतरा छह गुणा
अमेरिका में चिल्ड्रंस नेशनल हॉस्पिटल की डॉ मोनिका के. गोयल का कहना है, मार्च -अप्रैल के दौरान वाशिंगटन के एक क्षेत्र में जो एक हजार बच्चे संक्रमित मिले थे, उनमें से आधे हिस्पैनिक और एक तिहाई अश्वेत थे। गोयल के अध्ययन के मुताबिक, वाशिंगटन में श्वेतों की तुलना हिस्पैनिक बच्चों के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने की संभावना छह गुना रही। वहीं अश्वेतों में यह दोगुनी दिखाई दी।
सीडीसी की रिपोर्ट ने भी की पुष्टि
सीडीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में अश्वेत बच्चे ज्यादा जोखिमग्रस्त मिले हैं। एक मार्च से 25 जुलाई के बीच अस्पतालों में भर्ती हुए 18 साल से छोटे 576 बच्चों पर हुए अध्ययन में पाया गया कि इनमें से आधे किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त थे। इसमें मोटापा, फेफड़ों की बीमारी सामान्य रही। सीडीसी ने एमआईएस सी को लेकर भी 2 मार्च से 18 जुलाई के बीच 40 राज्यों के 570 बच्चों पर अध्ययन किया था।
इसमें सामने आया कि इस बीमारी से ग्रस्त 40 फीसदी बच्चे हिस्पेनिक और 33 फीसदी अश्वेत थे। वहीं श्वेतों का आंकड़ा सिर्फ 13 फीसदी था।
जरूरी सेवाओं से जुड़े अधिकांश पीड़ितों के अभिभावक
यूनिवर्सिटी ऑफ स्टैनफोर्ड में पीडियाट्रिक्स की प्रो. युवोन माल्डोनाडो के मुताबिक, इन अधिकांश बच्चों के माता -पिता कमजोर तबके से हैं औऱ वे सेवाओं से जुड़े हैं। इनका बाहर काफी आना-जाना होता है, इससे इनके बच्चों में संक्रमण का जोखिम ज्यादा है।
हावर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया है कि मैसाचुसेट्स मेें अप्रवासियों खाद्य सेवा से जुड़े कामगारों और साझा घरों में रहने वाले समुदायों में संक्रमण दर ज्यादा रही है।
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